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ओबीसी समाज अपना इतिहास भुला।

  • ओबीसी समाज अपना इतिहास भुला।
    आधी आबादी भी बदल जाए तो राजनीतिक परिवर्तन संभव ।जगदीश द्रविड़
    देश को आजाद हुए 77 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश की आधी आबादी को शिक्षा, नौकरी, और व्यवसाय में और जीवन जीने की बुनियादी जरूरत से रोज जूझना पड़ता है। कहेनें को तो जनसंख्या में ओबीसी समाज ज्यादा है किंतु शासन प्रशासन में हिस्सेदारी के मामलों में यह बहुत परेशानियों से गुजरता नजर आता है। यह समाज मुख्ता कृषि कार्यों से जुड़ा है देश मे 4.% कृषि भूमि का यह मालिक है ।ज्यादातर पुरानी कृषि प्रणाली से खेती करता है ।आधुनिक खेती के बारे में बहुत कम जानकारी है ।वैसे हमारी सरकार कहती है कि हम कृषि को लाभ का धंधा बनाएंगे जिसमें किसानों के आय दोगुना करने की बात की गई थी किंतु आज भारतीय किसान की विकास दर 3.5 से घटकर 1.2% रह गई है ।किसानों के बच्चे नौकरियों के लिए भटक रहे हैं 2021 से अब तक 2.5 करोड़ से अधिक लोग नौकरी गवा चुके हैं। गरीबी रेखा से नीचे उभरने के जगह 7.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा पर पहुंच चुके हैं। जिसमें बहुत बड़ा हिस्सा मध्य वर्गी लोगों का भी है। भारत के नौजवानों को हर वर्ष लगभग 2 करोड़ नौकरियां मिलनी चाहिए जबकि केवल 43 लाख नौकरियां है सरकार अभी तक दे पाई है। किसान अपनी मांगों को लेकर जो संघर्ष कर रहे हैं उसमें सरकार की अड़ियल रवैया बताता है कि सरकार जान चुकी है कि किसान संगठित नहीं है। सरकार यह भी जानती है कि 96% कृषि भूमि के मालिक वह लोग हैं जो या तो अपर कास्ट से आते हैं या खेती करना ही नहीं जानते। वह सिर्फ सरकारी रिकॉर्ड मे कृषि भूमि के मालिक हैं। उनकी जमीनों को लोग खोट पर लेकर खेती करते हैं।असल में जो खेती करता है वह खेती का मालिक नहीं है। ओबीसी समाज के संवैधानिक हक अधिकार की लड़ाई जो अन्य वर्ग या समुदाय के लोग लड़ रहे हैं वह उसमें जुड़ना नहीं चाहते। क्योंकि उनको एक अलग विचारधारा से जोड़ा जा रहा है। ओबीसी समाज को हक अधिकार से वंचित रखने में उसे समाज के लीडरों की महत्वपूर्ण भूमिका है ।वह उसे हक अधिकार के लिए लड़ने के लिए तैयार नहीं करते। विधायक, सांसद के टिकट लेने के चक्कर में संवैधानिक सिस्टम को चोट पहुंचाने में भी डरते हैं । रही बात अगर ओबीसी समाज की बड़ी राजनीतिक पार्टियों भी है तो वह भी भाई भतीजावाद तक या उसे समाज के ओबीसी भाइयों के बल पर सत्ता में आना चाहती है ।जो कि संभव नहीं है ।ओबीसी की इन सब समस्या की जो वजह है उसमें अपने महापुरुषों की जानकारी ना होना भी बड़ी वजह है। दूसरा बड़ी जातियों के द्वारा दूसरी ओबीसी जातियों के विरोध में भड़का देना आग में घी का काम करता है। ओबीसी युवाओं को संगठित कर जाति की जगह वर्ग की भावना से जोड़ने वाले संगठनों की कमी से भी इस वर्गों को सत्ता तक पहुंचने में कठिनाइयां हो रही है। जो राजनीतिक दल या गैर राजनीतिक दल इनकी हिस्सेदारी हेतु जाति आधारित जनगणना की बात करते हैं ।तो विपक्षी दल अपनी पसंद के ओबीसी लीडरों को सामने खड़ा करके उसे मुहिम को पलीता लगाने का काम करते हैं ।कहीं ना कहीं देश की सत्ता परिवर्तन का अधूरे काम में ओबीसी समाज की बड़ी भूमिका है ।चाहे तो थोड़ा जागरूक होकर देश की सत्ता परिवर्तन कर यह वर्ग अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर सकता है। ऐसा तब ही संभव है जब ओबीसी समाज जितनी रुचि धर्म में लेता है काश यदि उसकी आधी रुचि भी राजनीतिक में लगा दे तो देश में परिवर्तन लाकर अपनी किस्मत तथा आने वाली पीढ़ी की किस्मत बदल सकता है ।यह काम इतना भी पेचीदा नहीं है जितना इस वर्ग के जागरूक नौजवान समझते हैं। जरूरत है ओबीसी की युवाओं को सामने आने की ताकि सिस्टम पर प्रहार कर हिस्सेदारी सुनिश्चित की जा सके ।

 

 

ओबीसी समाज अपना इतिहास भुला। आधी आबादी भी बदल जाए तो राजनीतिक परिवर्तन संभव :जगदीश द्रविड़ सामाजिक कार्यकर्ता

 

रायसिंह मालवीय / सीहोर (एमपी)

 

देश को आजाद हुए 77 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश की आधी आबादी को शिक्षा, नौकरी, और व्यवसाय में और जीवन जीने की बुनियादी जरूरत से रोज जूझना पड़ता है। कहेनें को तो जनसंख्या में ओबीसी समाज ज्यादा है किंतु शासन प्रशासन में हिस्सेदारी के मामलों में यह बहुत परेशानियों से गुजरता नजर आता है। यह समाज मुख्ता कृषि कार्यों से जुड़ा है देश मे 4.% कृषि भूमि का यह मालिक है ।ज्यादातर पुरानी कृषि प्रणाली से खेती करता है ।आधुनिक खेती के बारे में बहुत कम जानकारी है ।वैसे हमारी सरकार कहती है कि हम कृषि को लाभ का धंधा बनाएंगे जिसमें किसानों के आय दोगुना करने की बात की गई थी किंतु आज भारतीय किसान की विकास दर 3.5 से घटकर 1.2% रह गई है ।किसानों के बच्चे नौकरियों के लिए भटक रहे हैं 2021 से अब तक 2.5 करोड़ से अधिक लोग नौकरी गवा चुके हैं। गरीबी रेखा से नीचे उभरने के जगह 7.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा पर पहुंच चुके हैं। जिसमें बहुत बड़ा हिस्सा मध्य वर्गी लोगों का भी है। भारत के नौजवानों को हर वर्ष लगभग 2 करोड़ नौकरियां मिलनी चाहिए जबकि केवल 43 लाख नौकरियां है सरकार अभी तक दे पाई है। किसान अपनी मांगों को लेकर जो संघर्ष कर रहे हैं उसमें सरकार की अड़ियल रवैया बताता है कि सरकार जान चुकी है कि किसान संगठित नहीं है। सरकार यह भी जानती है कि 96% कृषि भूमि के मालिक वह लोग हैं जो या तो अपर कास्ट से आते हैं या खेती करना ही नहीं जानते। वह सिर्फ सरकारी रिकॉर्ड मे कृषि भूमि के मालिक हैं। उनकी जमीनों को लोग खोट पर लेकर खेती करते हैं।असल में जो खेती करता है वह खेती का मालिक नहीं है। ओबीसी समाज के संवैधानिक हक अधिकार की लड़ाई जो अन्य वर्ग या समुदाय के लोग लड़ रहे हैं वह उसमें जुड़ना नहीं चाहते। क्योंकि उनको एक अलग विचारधारा से जोड़ा जा रहा है। ओबीसी समाज को हक अधिकार से वंचित रखने में उसे समाज के लीडरों की महत्वपूर्ण भूमिका है ।वह उसे हक अधिकार के लिए लड़ने के लिए तैयार नहीं करते। विधायक, सांसद के टिकट लेने के चक्कर में संवैधानिक सिस्टम को चोट पहुंचाने में भी डरते हैं । रही बात अगर ओबीसी समाज की बड़ी राजनीतिक पार्टियों भी है तो वह भी भाई भतीजावाद तक या उसे समाज के ओबीसी भाइयों के बल पर सत्ता में आना चाहती है ।जो कि संभव नहीं है ।ओबीसी की इन सब समस्या की जो वजह है उसमें अपने महापुरुषों की जानकारी ना होना भी बड़ी वजह है। दूसरा बड़ी जातियों के द्वारा दूसरी ओबीसी जातियों के विरोध में भड़का देना आग में घी का काम करता है। ओबीसी युवाओं को संगठित कर जाति की जगह वर्ग की भावना से जोड़ने वाले संगठनों की कमी से भी इस वर्गों को सत्ता तक पहुंचने में कठिनाइयां हो रही है। जो राजनीतिक दल या गैर राजनीतिक दल इनकी हिस्सेदारी हेतु जाति आधारित जनगणना की बात करते हैं ।तो विपक्षी दल अपनी पसंद के ओबीसी लीडरों को सामने खड़ा करके उसे मुहिम को पलीता लगाने का काम करते हैं ।कहीं ना कहीं देश की सत्ता परिवर्तन का अधूरे काम में ओबीसी समाज की बड़ी भूमिका है ।चाहे तो थोड़ा जागरूक होकर देश की सत्ता परिवर्तन कर यह वर्ग अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर सकता है। ऐसा तब ही संभव है जब ओबीसी समाज जितनी रुचि धर्म में लेता है काश यदि उसकी आधी रुचि भी राजनीतिक में लगा दे तो देश में परिवर्तन लाकर अपनी किस्मत तथा आने वाली पीढ़ी की किस्मत बदल सकता है ।यह काम इतना भी पेचीदा नहीं है जितना इस वर्ग के जागरूक नौजवान समझते हैं। जरूरत है ओबीसी की युवाओं को सामने आने की ताकि सिस्टम पर प्रहार कर हिस्सेदारी सुनिश्चित की जा सके ।

 

 

 

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